Wednesday 6 February 2013

सपने में सही, पर बात हुई.

मैं: तुम. तुम क्यूँ आई हो फिर? क्यूँ मुझे चैन से नहीं रहने देती हो?

वो: मैं? मैं तुम्हे चैन से रहने देती? और मैं आई हू? अरे! तुमने ही तो बुलाया है मुझे.

मैं: क्या? मैंने कब बुलाया तुम्हें? मैं...मैं टी तुम्हें...

वो: क्या मैं तो तुम्हें? हरवक्त सोचते मेरे बारे में हो. याद मुझे करते हो. लिखते मुझे हो और आज आई हू तो कहते हो के क्यूँ आई हू? तुम मत सोचा करो तो मैं नै आया करुँगी अब से.

मैं: वो.. वो तो मैं... तुमसे दूर जाने की कोशिश करता रहता हूँ.

वो: नहीं जा सकते हो तुम मुझसे दूर, चाहे जितनी भी कोशिश कर लो. आओगे तुम मेरे ही पास लौटकर.

मैं: क्यूँ आऊँ मैं तुम्हारे पास भला?

वो: वो तो तुम्हीं जानते हो बेहतर. मुझे क्या पूछ रहे हो.

मैं: नहीं आऊंगा तुम्हारे पास कभी भी. तुम तो मुझे एक नज़र देखती तक नहीं तो क्यूँ आऊँ मैं. जब तुझे मैं अच्छा ही नहीं लगता तो क्यों परेशान करू मैं तुझे. जब भी देखती हो मुझे नज़र अंदाज़ कर देती हो तो क्या मुझे खुद को तकलीफ देने का शौक चढा है जो बार बार तुम्हारी तरफ आऊँ ये जानते हुए के दिल मेरा ही टूटेगा फिर.

वो: किसने कहा के तुम मुझे पसंद नहीं हो? और एक मिनट, मैंने कब तुम्हारा दिल तोडा? कब तकलीफ दी तुम्हें मैंने?

मैं: हर बार दी. जब तुम देखकर भी मुझे नहीं देखती. जब तुम समझकर भी नहीं समझती. जब भी मुस्कुरा के किसी से बात करती हो, चाहे वो फोन पर या फिर किसी और तरीके से...

वो: वो तो बस ऐसे ही. मज़ा आता है तुम्हें परेशां करने में.

मैं: ये बात है? तो मैं तुमसे बात ही नहीं करूँगा अब.

वो: ठीक है. तो मैं जाती हूँ.

मैं: सच्ची?

वो: मुच्ची.

मैं: पहलीं बार आई हो, बैठोगी नहीं थोरी देर भी मेरे पास?

वो: क्यूँ बैठू? जब तुझे मुझसे बात ही नहीं करनी.

मैं: किसने कहा के मैं तुमसे बात नै करना चाहता.

वो: अभी तो तुमने कहा.

मैं: वो तो बस ऐसे ही कह दिया. मजाक में. कब से तुम्हारा इन्तजार कर रहा हू और तुम्ही से बात नहीं करूँगा? तुम्हें क्या पता मैं कितना खुश हू आज, कितना सुकून मुइल रहा है तुमसे बात करके. काश तुम और पहले आती!

वो:अब तुम इतने कह रहे हो तो ठीक है. मैं थोरा बैठ ही जाती हू. अब खुश?

मैं: Thank you. तुम बहुत अच्छी हो. अच्छा पहले क्यूँ नहीं आई तुम?

वो: बस ऐसे ही. इन्तेज़ार कर रही थी तुम्हारा. लेकिन तुम तो पास आने से भी घबराते हो सो मैं खुद ही चली आई.

मैं: अच्छा किया. बस यूँही मुझसे मिलने आती रहो. और यूँही मुझसे बात करती रहो. मुझे अच्छा लगेगा.

वो: और अगर मैं नहीं आई तो?

मैं: तो क्या? मैं आ जाऊँगा और तुम अगर नहीं मिली तो यूँही तुम्हारा इंतज़ार करूँगा जैसे की अब तक कर रहा था.

वो: पूरे बुद्धू हो तुम. मैं आउंगी बाबा... अब मैं जा रही हू अभी के लिए.

मैं: जा रही हो?

वो: हाँ. लेकिन वापिस आने के लिए.

मैं: मैं इन्तेज़ार करूँगा.

वो: मैं भी.

 

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