Saturday 1 March 2014

ग़म का साथ

हर कोई दिल को तोड़ चला,
जब साया भी संग छोड़ चला,
तब हाथ पकड़ कर मेरा फिर,
जिसने चलना सिखलाया है ।
उस ग़म का साथ निभाना है,
जिस ग़म ने मुझे अपनाया है ।।

सूनी राहें,
खाली बाहें ।
सूखी नयनों की,
बरसातें ।।
टूटे सपने ,
छूटे अपने ।
रह गयी तो बस,
रूठी यादें ।।
उस याद को क्यूँ मैं याद करूँ,
बरसात में प्यासा क्यूँ तरसूं ,
बस यही सोच मैं जीता हूँ,
अब दर्द ही दर्द मैं पीता हूँ ।।
जिसने पथराई अखियों से,
नींदों को दूर भगाया है ।
उस ग़म का साथ निभाना है,
जिस ग़म ने मुझे अपनाया है ।।

दो कदम चला,
जिन राहों पर ।
वो राहें भी,
संग छोड़ गयीं ।।
जिस मंजिल की,
मुझे चाहत थी ।
वो भी मुझसे,
जब खेल गयी ।।
तो उन राहों पर क्यूँ पैर धरू ,
मंजिल की तरफ कैसे जाऊं,
बस तन्हाई में जीता हूँ,
अपने जख्मों को सीता हूँ ।।
जिसने मेरे क़दमों को फिर,
एक अलग ही राह दिखाया है ।
उस ग़म का साथ निभाना है,
जिस ग़म ने मुझे अपनाया है ।।

कुछ कांटे थे,
कुछ पत्थर थे ।
कुछ हाथी दांत से,
खंजर थे ।।
जिसको मैं फूल,
समझता था ।
वो तो बाणों से,
बदतर थे ।।
फिर क्यूँ अब चोट सहूँ दिल पर,
फिर क्यूँ न अड़ जाऊं जिद पर,
के अबकी लौट ना पाऊंगा,
के अब ना धोखा खाऊंगा ।।
जीवन भर साथ निभाने का,
जिसने विश्वास जताया है ।
उस ग़म का साथ निभाना है,
जिस ग़म ने मुझे अपनाया है ।। कुंदन ।।