Wednesday 30 January 2013

एक उम्मीद

एक उम्मीद की लौ,
अब तक दिल में जल रही है,
धुंधली ही सही,
पर रौशनी सी निकल रही है,
कही दूर पंछियों की,
चहचहाहट महसूस करता हू,
शायद ये काली रात अब,
सुहानी सुबह में बदल रही है.

शायद अब थम गया है तूफ़ान,
मंद हो रही लहरें भी,
था दूर तलाक ना कोई,
अब फिर नजर आ रहे कुछ लोग,
अब तक डूब रही थी ये,
कश्ती इन लहरों में,
फिर किनारे और कुछ सहारे,
नज़र आने लगे हैं.

अब डर नहीं है कहीं,
इस अँधेरे का दिल में,
और ना ही इन् छोटी छोटी लहरों से,
घबरा रहा हू मैं,
सहारा है इस जलती हुई लौ का,
जो धुंधला है,
इस लौ और टूटी कश्ती के सहारे,
किनारे तक पहुँच ही जाऊँगा.

देखो, फिर से ठंडी ठंडी,
हवा चलने लगी है,
फिर वही मदहोश कर देनेवाली,
खुसबू है इन् फिजाओं में,
ये नज़ारे और बहारें,
फिर खिलने लगे हैं,
शायद इन्हें भी एहसास हो रहा है,
के सुबह आ रही है.

शोर फिर उठने लगा है,
दूर सहरों में कहीं,
खामोशियों का सिलसिला,
थमने लगा है फिर शायद,
नज़रें सबकी टिकी सो हैं,
नीले आसमां की तरफ,
सबको इन्तेज़ार है उस सुहानी,
उम्मीद भरी सुबह के आने का.
                     कुंदन विद्यार्थी 

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