Tuesday 15 January 2013

प्यार या दर्द.

प्यार ! इस शब्द को जितना समझने की कोशिश करता हू , उतना ही उलझ जाता हू. सारी होशियारी धरी की धरी रह जाती है. सारे लफ्ज, सारी परिभाषाएँ कम परने लगते हैं इसे समझने के लिए. अब तो यूँ लगने लगा है के मैं कभी समझ ही नहीं पाऊंगा इस प्यार को. और शायद ये भी नहीं समझ पाऊंगा के मुझे कभी प्यार हुआ भी है या नहीं.
अब तक मैंने बहुत से दिलों को जुड़ते देखा है. और उन दो दिलों को मिलते देखकर हरबार यूँ लगा के प्यार से सुन्दर और कुछ हो ही नहीं सकता. पर फिर दिलों को टूटकर बिखरते हुए भी देखा और मेरी हर सोच बदलने लगी. सबकुछ बकवास लगने लगा. यूँ लगने लगा के प्यार में सिर्फ दर्द मिल सकता है, खुशियाँ नहीं.
यूँ तो मैं भी इस शब्द से अछूता नहीं रहा हू. इस शब्द ने मुझे इतना उलझाया के मैं इसे समझने की जिद पे आ गया, लेकिन सब बकवास. मैं यहाँ भी असफल हो गया. और आज तक इसे नहीं समझ पाया हू.
वो आती थी, कुछ यूँ शर्माती थी के मेरे होश उड़ा जाती थी. मेरी धड़कने बाधा जाती थी. घंटो उसकी एक झलक पाने की चाह में भटका करता था मैं भी. और हर कोशिशों के बाद जब वो सामने आती तो नजरे तक नहीं मिला पाटा उस से. छुप छुप के देखने की आदत सी हो गयी थी मुझे. जब वो मुस्कुराती तो यूँ लगता के सब कुछ खूबशूरत है. और उसकी मायुश चेहरे की एक हलकी सी भी झलक मुझे परेशा कर जाती. उसकी गैर मौजूदगी मुझे तरपा सी जाती. मुझ नासमझ को भी ये लगने लगा था के मुझे प्यार हो गया है. अपने दिल के जज्बातों को बयां भी करना चाहा हमने पर कभी हिम्मत, तो कभी वक्त की नजाकत और कभी उसकी बेरुखी ने मुझे रोक दिया. मैं भी आशिक बन गया. और आम आशिकों की तरह दर्द में डूबता चला गया. ताना रहने लगा और ये तनहाईया भी दिल को सुकून देने लगी.
वक्त गुजर और इस शब्द को समझने की कोशिशो के बाद मैं सिर्फ इतना ही समझ पाया के प्यार कुछ नहीं होता. सब मन का भ्रम होता है. दिमाग से काम लेने लगा और इस शब्द से दूर जाने की कोशिश करने लगा. पर दिल तो दिल है, ये भी कभी किसी का मानता है क्या? सारी कोशिशे बेकार से लगने लगती कभी कभी और मैं एक अनोखे दर्द में डूबता चला जाता. खुद को अचानक ही बेबस और लाचार महसूस करने लगता हू आज भी. आज तक मैं उस मीठी सी बेबसी से उबार नहीं पाया हू. समझ ही नहीं पाया हू शायद अब तक प्यार को और अपने दिल के जज्बात को. खुद में ही उलझा रहने लगा हू पर आज भी उसकी एक हलकी सी झालक धडकन बाधा जाती है. उसके होने का एहसास आज भी मुझे तन्हा कर जाता है. उसकी बेरुखी आज भी मुझे तरपा जाती है. आज भी उसे साथ पाने की तमन्ना जगा जाती है उसकी एक नजर. उसका पलट के न देखना आज भी मेरे दिल के तार तार कर जाता है. पता नहीं ये क्या है और क्यूँ है. पर यही सच है.
हो सकता है के यही प्यार हो. पर इस शायद वाले प्यार को अगर मैं समझ पाया हू तो बस इतना के प्यार बस दर्द का दूसरा नाम है. ये ऐसा दर्द है जिसे हर कोई पाना चाहता है. इस दर्द से हर कोई गुजरना चाहता है. ये दर्द ऐसा है जो शुकून देता है. शायद ये वही दर्द है जो दो दिलो को करीब लाता है. लबों को मुस्कुराना सिखलाता है.
कभी कभी एक ऐसी भी उम्मीद जगती है के ये दर्द उसे भी अपना एहसास दिलाएगी. एक दिन उसे भी मेरे करीब लाएगी और उसके अंदर भी एक दर्द जगाएगी. और उसे भी शायद मेरी तरह प्यार वाला दर्द मिल जाए.
अजीब है ये शब्द लेकिन है बड़ा ही बेपरवा सा दर्द.

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