Friday 7 August 2015

मन की बातें ४

चलो उड़ चलें,
एक परिंदे सा,
नीले आसमां पे,
बेख़ौफ़ होकर,
बादलों से भी ऊपर,
और ऊपर ।
जहां ,
ना सरहदें हैं,
न पाबंदियां,
बस जो है,
वो अपना सा है,
अपना एक पूरा आसमां ।। कुंदन ।।


गर ये खता है,
तो हां,
मैंने कर ली मोहब्बत ।
कर दिया किसी के नाम,
अपना दिल,
अपनी जान और अपनी साँसे ।।
अब तो बस,
मैं इंतज़ार में हूँ,
उनके आने का ।
के वो आए,
मुझे अपनाएँ,
या फिर मुझे सजा दे जुदाई का ।। कुंदन विद्यार्थी ।।


यूं न रूठो ,
इन हवाओ से,
और अपनी मुस्कराहट से ।
मेरी आँखों में देखो,
के मैं,
तेरा खतावार हूँ ।।
चाहे टूट कर,
चाह लो या,
तोड़ जाओ दिल को मेरे ।
के मैं,
तेरा,
तेरे सजा का हकदार हूँ ।। कुंदन विद्यार्थी ।।


तेरा अक्स,
दिल में,
यूँ सजा हुआ है,
के जैसे,
एक मंदिर में,
प्रेम की प्रतिमूर्ति ।
और मैं,
एक पुजारी सा,
तेरे दर पे,
हर सांस में,
तेरा ही नाम,
लिए जा रहा हूँ ।। कुंदन ।।


टूटकर,
इश्क में,
दिल ने चाहा तुझे ।
तुम मगर,
तोड़कर,
फिर इसे चल पड़े ।।
रास्तों से खफा,
इस कदर,
तुम हुए ।
अपने वादों,
से मुंह,
मोड़कर चल दिए ।। कुंदन ।।


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