Friday 7 August 2015

मन की बातें 5

वो डूबता,
सा सूरज,
तनहा ही डूबता है ।
फिर भी,
सुबह निकलकर,
रौशन जहाँ करेगा ।। कुंदन ।।


रह रहके,
टीस उठती है,
रह रहके,
दिल तरपता है ।
जब याद,
तेरी आती है,
पलकों से,
लहू बहता है ।। कुंदन ।।


हर शौक,
हर तमन्ना,
तेरी आँखों से,
शुरू होती है ।
तेरी पलकों पे हो,
सुबह मेरी,
तेरी पलकों पे शाम होती है ।। कुंदन ।।


जीवन में,
सिर्फ मैंने,
काले अँधेरे,
देखे हैं ।
अब खौफ का,
ये आलम है,
इस रौशनी से,
डरता हूँ ।। कुंदन ।।


सोचना,
सोचकर फिर,
बताना मुझे ।
मेरे,
पलकों के आसूँ,
समझ पाओगे ??
कह रहे हो,
के मुझको ,
संभालोगे तुम ।
अपने क़दमों ,
से पर क्या ,
संभल पाओगे ??


हवा में बिखरना,
उलझ कर सुलझना ।
तेरी उँगल में,
फसना निकलना ।।
बहुत खूब आता है,
तेरी इन लटों को ।
दिलों पे बिजुल सी,
बनकर बरसना ।। कुंदन ।।



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