Saturday 7 January 2017

सीख गया हूँ

गिरकर संभलना सीख गया हूँ,
आगे बढ़ना सीख गया हूँ ।।

धुप छाव का खेल है जीवन,
कुछ शब्दों का मेल है जीवन,
कड़वा ज्यादा मीठा कम है,
बड़ा ही अद्भुत रेल है जीवन ,
जीवन के इस राग द्वेष में,
उगना ढलना सीख गया हूँ ।
गिरकर संभलना सीख गया हूँ,
आगे बढ़ना सीख गया हूँ ।।

बड़े लगन से बाग़ लगाना,
सींच सींच कर फूल उगाना,
फूलों का काँटा बन जाना,
हाथ चीर फिर दिल दुखलाना ,
फूल फूल में अंतर क्या है,
ये भी समझना सीख गया हूँ ।
गिरके संभलना सीख गया हूँ,
आगे बढ़ना सीख गया हूँ ।।

खुद के जख्म का मरहम बनना,
अपने दिल से बिछड़ के मिलना,
ठोकर खा खा कर फिर मैंने,
अंधेरों में चलना सीखा ,
आती जाती आंधी में अब,
बुझके जलना सीख गया हूँ ।
गिरके संभलना सीख गया हूँ ,
आगे बढ़ना सीख गया हूँ ।। कुंदन ।।

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