Wednesday 25 May 2016

तन्हाई मेरे साथी

तन्हाइयों से क्या शिकवा करें, जख्म तो हैं मिले महफ़िलो से हमें । रास आये न हम मंजिलो को कभी, रास्तो से मोहब्बत मिली है हमें ।।

तुमको पाने की थी होड़ ऐसी लगी, जैसे सांसो से था वास्ता कुछ तेरा । मुड़ के देखा जो तब ये समझ आया की तुमको पाये न हम खुद को खोते गये ।।

राहतों का समंदर लगा जो कभी, उसकी चाहत में नदियों को छोड़ आये हम । पलकें भीगी रही दिल तड़पता रहा, प्यास भी न बुझी डूबते भी गए ।।

सोहबतों ने मेरी खूब टोका हमें, जा ठहर, सोच, मुड़, लौट आ अब भी तू । हम न सुन ही सके न समझ पाए हम, ना ही तेरे बने न ही घर के रहे ।।

अब तो मंज़र है ये खुद से भी दूर हूँ, खुद को भी इस तरह न मैं मंजूर हु । वक्त ऐसा है बस तन्हाइयां संग है, सारे सपने भी हमसे हैं रूठे हुए ।।
    कुंदन विद्यार्थी

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