कुछ शेर, जो आजकल मेरे अंदर उबलते हैं फिर शब्दों के रूप में बाहर आ जाते हैं. देखें कहाँ तक पहुचती है इसकी दहाड़........!!!
१ ) आवारों की बस्ती में फिरता रहा हूँ,
तुझे याद अक्सर ही करता रहा हूँ,
जाने कहाँ फिर दिखे तू मुझे, बस,
ये उम्मीद लेके भटकता रहा हूँ///
२) लाल स्याही देख इसे खून न समझ लेना,
हैं तो स्याही ही, लेकिन शब्द मेरे लहू से भींगे हैं//
३) अच्छा हुआ के शीशा जानकार तोड़ दिया तुमने//
अगर तुम ही नहीं तो ये दिल किस काम का//
४) ना जाने भीड़ कैसी है, ना जाने होड कैसा है//
मैं तो तन्हा ही फिसला था, मगर ये होड कैसा है//
५) मेरी मोहब्बत का तुझे इल्म नहीं शायद//
तेरा नाम पहले लेता हू और सांस बाद में//
६) वो तो यूँही चोरी का इलज़ाम देते हैं मुझपर//
चाहे तलाशी लेले, खुद के सिवा उन्हें कुछ नहीं मिलेगा//
७) सब्र की बात भला पूछते हो तुम किस से//
उम्र हमने भी काटी है उनकी राहों में//
८) जिक्र जब भी मोहब्बत का आएगा//
शायद तेरा नाम मेरे साथ ही लिया जाएगा//
मेरा यूँ था के मैं जता भी ना सका//
और तू खुद से भी छुपाती रह गयी//
९) मुझे भूल जाना इतना आसान नहीं है ए सलमा//
तू पलकें बंद करेगी, मैं खाबों में आ जाऊँगा//
१०) मैं तो कबका छोड़ जाता ये सहर//
बस डरता हू के तू मुझे और मैं तुझे भूल न जाऊं//
११) एक बार फिर से बेहेक जाने के लिए तो आ//
मनाने के लिए ना सही, सताने के लिए तो आ//
मुझे तो बस तेरे दीदार की ललक है//
दिल में भले ही ना बसना तू, मगर दिल तोड़ जाने के लिए तो आ//
कुंदन विद्यार्थी
ये थे कुछ शेर, जो दहाड़ने की कोशिश कर रहे थे. अब दहाड़ कहा तक पहुचती है ये तो बाद की बात है.
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