वो दिन हमारे ही थे,
पर आज कुछ है खो गया,
वो राह अब सुनसान है,
जिस राह हम संग थे चले,
अछे थे हम नादान थे,
हर बात से अनजान थे,
एक हमारा था जहाँ,
और अपने थे वो पल,
उस पल में खुशियाँ थी बहुत,
और गम भी थे कई,
पर जो अपना साथ था,
उस गम की क्या औकात थी,
फिर याद आता है मुझे,
थे बाग में जब हम गए,
शाम होने तक जहाँ पे,
हमने की थी मस्तियाँ ,
याद है हर शाम को,
जहाँ हम थे अड्डा मारते,
चाय पीते थे जहाँ पर,
और लरकी छेरते,
वो दिन हमारे ही थे,
और अपना था जहाँ,
साथ जब होते थे हम,
बांधते थे एक शमां ,
वो बात ही कुछ और था,
जब हमारा साथ था,
क्या क्या ना हमने था किया,
सबको हमपे नाज़ था,
राज़ की एक बात है,
हम लड़े थे कई दफा,
होते खफा हम भी बहुत थे,
पर उसमें भी एक प्यार था,
एक बात है सबसे छुपी,
थी हमने जब थोरी सी पी,
की थी कितनी मस्तियाँ,
यूँही हमने रात भर,
वो दिन भी हमको याद है,
जब गए थे हम बिछड,
बाद जिसके हमने काटी ,
अनमनी ही ये सफर,
काश! लौटा दे हमें फिर ,
दिन थे अपने जो कभी,
फिर ना उनको खोने देंगे,
खुद पे इतना है यकीन.
कुंदन आर विद्यार्थी.
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