Wednesday, 30 January 2013

कहाँ रह गया रे. (गजल)

कहाँ गुम हुए सब कहाँ सब सहारे,
कहाँ रह गया तू कहाँ रह गया रे,
कहाँ तेरी मंजिल कहाँ हैं किनारे,
कहाँ रह गया तू कहाँ रह गया रे.

है तन्हा भटकता कहाँ दर-ब-दर तू,
न ही काफिला ना कोई आशियाँ रे,
तू ज़रा सांस ले बैठ जा एक पल को,
कदम लड़खराते हैं तू थक गया रे.

भवर में अटक सी गयी तेरी कश्ती,
ना किनारे कहीं, ना ही पतवार तेरा,
कैसे बच पाएगा सोच ले तू ज़रा फिर,
ना कोई रास्ता आ गयी आंधियां रे.

ना तलबगार तेरा कोई इस जहाँ में,
जबकि तू था मददगार सबके लिए ही,
तुझे क्या मिला उस भलाई के बदले,
रह गया तू अकेला निचे इस आसमां के.

फलसफा तेरा था तू न मायस होगा,
ना तू घबराएगा, मुस्कुराएगा हर पल,
आँख अबतक खुली, ना ही आंसू बहे हैं,
रह गए हैं तो बस, गुबारे गुबारे,

तेरी तकदीर लिख दी है ना जाने कैसी,
न कोई खुशी है, जहाँ देख गम है,
कर ना उम्मीद तू अपनी किस्मत से पगले,
है मुक़द्दर में तेरी दरारें दरारें.


कहाँ गुम हुए सब कहाँ सब सहारे,
कहाँ रह गया तू कहाँ रह गया रे,
कहाँ तेरी मंजिल कहाँ हैं किनारे,
कहाँ रह गया तू कहाँ रह गया रे.
                              कुंदन विद्यार्थी.

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